डर–लॉक डाउन–अनलॉक

सुहैल काकोरवी, लिटरेरी एडिटर, आई.सी.एन. वर्ल्ड

उस वक़्त देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर भी फ़िक्र के आसार थे जब उन्होंने मार्च २४ २०२० रात आठ बजे सारे मुल्क में लॉक डाउन का ऐलान किया और बहोत बेबसी से कहा कि इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है जब अपनी तमाम तबाहकारियों के साथ कॅरोना मुल्क में प्रवेश कर चूका था और उसने इटली इंग्लैंड और इंसानी सोच के मुताबिक़ संसार की महान शक्ति समझी जाने वाले अमेरिका को तक़रीबन यक़ीन दिलाना शुरू कर दिया था कि इंसानी अधिकार के घमंड के घुटने टेकने का वक़्त आ गया  है और जैसे जैसे वक़्त गुज़रता गया डर का साम्राज्य स्थापित होने के ऐसे इशारे मिलने लगे कि हर आहट मौत की आहट महसूस होने लगी प्रधान मंत्री ने जनता को सतर्क करने के लिए मीर तक़ी मीर के शेर के आधे हिस्से को माध्यम बनाया कि जान है तो जहान है लॉक डाउन हो गया पाबंदियां बेड़ी बन कर इरादों के क़दमों को ठहराने में सफल हो गयीं सूरज का निकलना इंसानी ज़िन्दगी में हलचल और गतिविधियों की शरुआत का कुदरती आदेश है लेकिन हो ये गया कि उसकी किरणे अंधेरों को रुखसत तो कर रही थीं लेकिन इंसानी वजूद के अंतर में शंकाओं के अँधेरे तो आदि से रौशनी की वयवस्था पर वर्चस्व रखने वाले सूरज के लिए भी बिलकुल नए थे जो अँधेरा कभी किसी विशेष परिस्थिति में व्यक्ति विशेष का मुक़द्दर बनता था समस्त संसार की करुणा के रूप में रौशनी की सब से बाड़ी ताकत के लिए चुनौती बन गया था अगर उम्मीद की देवी का सौंदर्य हालात के काले वस्त्र में अपनी छठा न बिखेर रही होती तो ये अँधेरा संसार के अस्तित्व को निगल गया होता  क्योंकि इस बीच कुछ अंतराल के बाद कहीं न कहीं से इसके उपचार  की  दवा की खोज हो जाने का समाचार आ जाता जबकि रोग ही इंसानी अक़्ल को हरा चुका था तो सिवाए अटकल के बचा क्या था और शायद निराशा से ग्रसित मानवता की सान्तवना के लिए जो हो जाएगा उसे हो गया बताया जा रहा था जहाँ तक मेरे डर की मनोदशा का सवाल है मैं उसे सच मान लेता था अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शायद कुछ बुद्धिमानो ने ये तरकीब निकाली थी ये अगर सिर्फ झूठ था फिर भी लुभावना था और हमारे डर के विरुद्ध एक हथियार के रूप में हमारे दिमाग़ों की सुरक्षा ख़ामोशी से कर रहा था.

ये मनोविज्ञान का निष्कर्ष है कि  खौफ इससे भी दूर होता है कि उन केंद्रों पर जाया जाए जो डर के स्रोत हैं  इस सिद्धांत को शायद सही मानते हुए बहोत बड़े पैमाने पर विधिवत अनुमति लेकर असहाये लोगों की सहायता के लिए लोग निकल पड़े और उन्होंने निश्चित रूप से उस डर से किसी हद तक आज़ादी हासिल कर ली उससे ध्यान हटना वरदान साबित हुआ. अपने डर पर जो नियंत्रण उन्हें प्राप्त हुआ वो सृष्टि का उनको उपहार था मैंने अगर कोई परोपकार किया उसका उल्लेख अनुचित हैं हाँ शासन की आवश्यक वस्तुओं की खरीद के लिए बाहर निकलने की अनुमति का मैंने सदुपयोग किया डर तो रहा लेकिन जो कुछ लम्हे तनाव से मुक्ति देते थे वो तनाव को स्थाई नहीं होने देते थे प्रोफेसर शाफ़े क़िदवई ने उस दौर की मानसिक पीड़ा और रचनात्मकता पर उसके प्रतिकूल प्रभाव का ज़िक्र किया जो हर रचनात्मक कार्य करने वाले पर था लेकिन मेरे दोस्त तरुण प्रकाश जी ने क़लम में पनाह ली और सब से बड़ा काम छंदों में गीता का अनुवाद किया और उसे यूँ अनूठा बनाया कि हर श्लोक में छंदों का स्वरुप बदल कर विविधता पैदा कर दी सुबूर उस्मानी मुझे प्रेरित करते रहे कुछ शेर भेज कर जिनपर मैं ग़ज़लें कहता रहा वो खुश होते रहे संतोष वाल्मीकि का फ़ोन बराबर आया वो हौसला देते रहे और खुद निराधार डर में फंसे उन्हें मामूली ज़ुकाम हुआ जो उस दौर में मामूली नहीं था उस बीमारी ने केवल शक को  निडर बनाया अंततःसंतोष संतोष उसे वही समझे लेकिन ग़लत समझे बिलकुल स्वस्थ रहे शेख असद आमिर फेसबुक पर शरारतें करता रहा बहोत उच्च स्तरीय उसने एक जुमला बहोत उम्दा कहा कि मैंने अपने घर के कमरों को ही शहर के मोहल्ले तसव्वुर कर लिए हैं.

वली कभी आये कभी नहीं आये कभी डरे लगे कभी निडर अपने अनिश्चित स्वाभाव की तरह संजय शौक़ खूब शाइरी करते रहे उन्होंने कॅरोना का बहोत कम ज़िक्र किया शायद उतना महत्व दिया जितना वो कमज़ोर शाइरी करने वाले को देते हैं दावर रज़ा संडीला से मुझसे फ़ोन पर बात कर मुझे अनुग्रहीत करते रहे और मैसेंजर पर हसीनों के हुजूम के लिए दिमाग़  का इस्तेमाल मेरे लिए दिल का इस्तेमाल करते रहे. जग ज़ाहिर है हाथ कीबोर्ड पर ज़बान मुझ से मुखातिब ये कमाल था जो वही कर सकते थे कॅरोना  का तो उन्होंने कोई ज़िक्र नहीं किया उस बीच क़यामत सामने खड़ी हो गयी मैं असद के घर पहुंचा उसने अपने दो जुड़वां सालों  से सुनी सच्ची खबर मुझे बताई कि दिन के २ बजे आसमान पर उल्टा चाँद नज़र आ रहा है मैंने छत  से ये मंज़र देखा डर स्थान्तरित हो गया अब चाँद से डर पैदा हुआ मौलाना हसन मियां बड़े आलिम हैं उनको फ़ोन किया वो हैरत में पड़े  फ़ोन पर दावर ने उसे चिल्ड्रन मून कहा वो चाँद जैसे चेहरों की दुनिया के ज्ञाता हैं मेरे डर को दूर कर दिया और बच्चों के चाँद पर ग़ज़ल मुझसे कहला ली ये ग़ज़ल;

 लाख भी इसमें ठंडी चमक है , लाख है ये अलबेला चाँद

तुझसे हसीं तो फ़िर भी नहीं है , जो है ये बेचारा चाँद

आँखों ने उल्टा देखा था वक़्त के नीले मैदां पर
सूरज से की उसने शरारत कहलाया बच्चों का चाँद

उसने ये सुनते ही रौशन लफ़्ज़ों से लब खोल दिए
मैंने कहा था ख़ामोशी में , है ये तेरे जैसा चाँद

रात में रौशन उसने किये थे मेरे सब आज़ाए वफ़ा
सुबह हुई तो दूर उफ़ुक़ में दिल की तरह से डूबा चाँद

मुझसे सुहैल वो मिलने आया , फ़िर ये तमाशा खूब हुआ
मेरे घर में उतरा उससे मिलने इश्क़ का मारा चाँद

असद का बेटा और मेरा दुलारा हसन मुझपर और  अपने बाप की अक़्ल पर पर तरस खा गया  पढाई में  बहोत तेज़ बहोत ज़हीन है उसने मिनटों में उसका वैज्ञानिक विश्लेषण करके  अपने मामाओं रिज़वान और कामरान को नासमझ साबित कर दिया अरशद मेरे पास आना चाहता था क्योंकि वो मुझे चाहता है उसका घर दूर था उसने फ़ोन पर बात की नाफ्फु पोलर ने मुझे फ़ोन करना अपना फ़र्ज़ बना लिया वो मेरे खाने को लेकर चिंतित थी जबकि मैंने उस दौरान बहोत कुछ बना डाला और उसकी सूचना नाफ्फु को देता रहा और उस दौर में मैंने खूब खाने बनाये जिनकी इमेजेज लोगों भेजता रहा और आमना , नमरा को उपहार के रूप में देता  रहा और  असद को  भी उर्फी उस वक़्त  खरीदारी करने जाते थे जब मैं लौट रहा होता था खुशगवार इत्तेफ़ाक़ था .सय्यद अहमद सबीह ज़ैदी साहब मेरे दोस्त भी हैं और बड़े भाई भी लॉक डाउन में सब से ज़्यादा जिसने प्रधान मंत्री की बात  मानी वो हमारे भाई ही थे आज तक घर से नहीं निकले और मेरे लिए भी यही आदेश था और है कॅरोना जो बनना चाहता था इन्होने बना दिया यानि डर का कारण. तन्हाई कितनी पुरसुकून होती है इसका अहसास मुझे इस दरमिआन हुआ लोग तो नहीं आ पा रहे थे ख्यालात ग़ज़लों और तहरीरों में दिमाग़ से होकर खूब जा रहे थे बीमारी के ख़त्म होने की दुआएं शाइरी में कहीं  सोशल मीडिया ने बहोत साथ दिया और फिर इसी हालत में रमज़ान का मुक़द्दस महीना आ गया सन्नाटे थे लेकिन ईमान नूर बन कर जगमगा रहा था ये भी खूब है कि  क़ुदरत ने वो करा दिया और दिखा दिया जो इंसानी तारीख ने कभी नहीं देखा था सारी दुनिया एक वबा के आज़ाद  होने से क़ैद में थी मियां रईस ने कई फ़ोन किये जनाब अमीरुल हसन मालिक अमीरु पेंटर और उनके छोटे बेटे रियाज़ ने बात की बड़े बेटे ऐजाज़ रईस हैं आज तक उनके फ़ोन का इन्तिज़ार है ग़ालिब का ख़याल था;

निकाला चाहता काम क्या तानों से तू ग़ालिब

तेरे बेमेहर कहने से वो तुझपर मेहरबाँ क्यों हो

मगर मेरे ताने कारगर हुए तौसीफ को निशाना बनाते हुए फेसबुक पर एक नोट लिखा  उसने फ़ोन करके हाल तक नहीं पुछा जबकि आम हालात में रोज़ मुलाक़ात होती थी नोट के कमेंट में उसके बॉस तरुण जी आगये और उसका फ़ोन आगया –

सेवा से प्रेरित दया की भावना से उत्साहित लोग प्रशासन से अनुमति लिए थे जानों को बचाने के लिए जान जोखिम में डालना आसान नहीं है लेकिन दृढ संकल्प इंसान की फितरत का एक स्थिर शक्तिशाली रूप है जिस रूप में पीड़ित असहाये मानवता की घुटती साँसों को अपनी साँसों से बल प्रदान करने की शक्ति है और इस शक्ति का उपयोग करने में लोग बेझिझक आगे आये डॉक्टर्स, पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी ये सुबूत दे रहे थे कि फ़र्ज़ के लिए जान देना शहादत है ,अविनाशी होने का गर्व प्रदान करने का पूर्वानुमान है विटनेस नाम के यू ट्यूब चैनल चलाने वाले मेरे पत्रकार दोस्त आमिर साबरी दुःख दर्द के निदान की राहें बनाने के लिए दुःख दर्द जानने निकले और मेरे पास भी आये सुख का अनुभव कराने के लिए मेरा शाइरी पर इंटरव्यू कर लिया इस तरह उन्होंने मुझे भी नीरसता से निकाला और अपने देखने वालों को भी. अतहर नबी और डॉ सुल्तान शाकिर हाशमी फ़ोन पर मेरा हाल लेते रहे शाकिर भाई ने तो इस आपदा पर पूरी किताब लिख डाली छपवा भी ली यह समय और हालात से ज़बरदस्त सुलह थी

पुलिस विभाग में कार्यरत मोहम्मद अली साहिल ने अपने स्तर पर सेवाएं कीं. कॅरोना योद्धा की उपाधि भी पायी फ़ोन पर अपना ये शेर मेरे नाम किया;

बढ़ाओ हौसला औरों का खुद रहो महफूज़

जो वक़्त आया है उसको गुज़र भी जाना है |

इसमें एक निवेदन एक परामर्श और उम्मीद पर क़ाइम रहने का सुन्दर सन्देश था इस बीच यू ट्यूब पर मोहब्बत और नफरत दोनों के तमाशे नज़र आये लेकिन पता ये चला प्रेम के योद्धाओं ने खूब इसका तोड़ किया और बताया कि ये भारत की महान मिटटी है जो प्रेम के लिए ज़रखेज़ [उपजाऊ] है और नफरत के लिए बंजर है यहाँ नफरत की आग बरसाने वालों के तोड़ के लिए प्रेम की मूसलाधार बारिश हो रही है नफरत वाले बिलावजह अपना वक़्त बर्बाद कर रहे हैं यहाँ नवीन गुरनानी ,मनोहर गुरनानी, कवि अलोक शुक्ल, प्रकाश टंडन तरुण प्रकाश विवेक भटनागर दानिश भारती संतोष वाल्मीकि सरीखे लोग रहते हैं जो नफरतों की वो बातें सुनते है जो सार्वजनिक हैं लेकिन उन्हें विष से अमृत बना देने का हुनर आता है  यहाँ संजय मिश्रा शौक़ की उर्दू शाइरी में हिंदी का समावेश यहाँ की एकता और अखंडता का प्रतीक है और यहीँ शाह ऐनुल हैदर क़लन्दर  ज़िआ मियाँ सज्जादानशीन काज़मिया हैं उस स्थल से प्रकाश का संचार कर रहे हैं जिसकी नीव कृष्णा भक्ति पर रक्खी गयी और उनका अनुसरण करते हुए सुबूर उस्मानी ,तौसीफ सिद्दीकी, मोहम्मद अरशद, शेख असद आमिर मुस्तफ़वी ,हसन मुस्तफा के दिल हज़रत मोहम्मद साहब के इस कथन से रोशन हैं कि अपने देश से प्रेम करो क्योंकि ये ईमान है और यहाँ मैं भी सौहार्द की दीपशिखा प्रज्वलित किये हूँ और उसकी हिफाज़त कर रहा हूँ नफरत वाले आपदा के दौर में भी समाज के शरीर में कांटे चुभोने का प्रयास करते रहे और मोहब्बत वाले उनको पराजित करते रहे समय था तो सब दृश्य देखे. सदा प्रेम का परचम बुलंद दिखाई देता रहा

रमज़ान का दूसरा रोज़ा था कि मेरे मोहल्ले में एक सब्ज़ीवाले जमना को कॅरोना हुआ इलाक़ा सील होने लगा अब डर ये हुआ कि ज़रूरत का सामान कैसे लाएंगे अल्लाह की मदद आयी जिस रास्ते से मैं निकलता था उससे इतनी दूरी पर बल्लियां लगीं कि मैं उस पाबन्दी से मुक्त था नमरा और आमना के यहाँ से ज़रूरत से ज़्यादा रोज़ा  खोलने का सामान आ जाता डर के मध्य समस्याएं उभरी  लेकिन निदान मेरे  पक्ष  में हो गए.

जब मेरे पडोसी जमना को क्वारंटाइन करने के लिए ले जाया गया तो ये डर बार बार हो रहा था कि वो वापस भी आएगा बरसों से उससे सब्ज़ी ले रहे थे सीधा ताल्लुक़ था रमज़ान के उपवास की हालत में उसके लिए दुआ करते जब इंसान किसी चीज़ के होने की कामना करता है तो डर इसके न होने की सम्भावनाये नज़र आती हैं लेकिन जमना कोवेड १९ नेगेटिव हो गया वो वापस आया तो मुझे बहोत क़ीमती लगा मैंने उस वक़्त नकारात्मक और सकारात्मकता पर एक नज़्म कही बिलकुल सीधी और साफ़ सोशल मीडिया पर पोस्ट की और कोई भी वो नहीं समझा जो मैंने कहा था लोग नज़्म की तारीफ में लिख तो रहे थे लेकिन उसी पर खामोश थे जिसपर अच्छा बुरा कुछ तो कहना चाहिए था कोवेड १९ सीधी बात थी मैं जमुना की नेगेटिव रिपोर्ट चाहता था और पॉजिटिव से डर रहा था जो पहले आकर उसे अस्पताल ले गयी थी यही केवल यही दौर था जब नेगेटिव वरदान था और इसी बात को मैंने कहा था जिन लोगों ने तारीफ लिखी थी उनमें से जिन से मेरा फ़ोन पर संपर्क रहता था बात की तो कोई शब्दों के चयन की कोई भावना की अभिव्यक्ति की कोई कल्पनाशीलता की तारीफ कर रहा था एक ने भी वहां नज़र नहीं डाली बात कुछ अलग कही गयी थी फिर ये की बात मैंने कविता का असली तात्पर्य आखिरकार नज़्म के साथ नोट में लिख दिया था मगर लॉक डाउन के बाह्य सन्नाटे से ज़्यादा ये सन्नाटा इंसानी समझ पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है साइंस और टेक्नोलॉजी की उन्नति के मध्य शायद संवेदनशीलता का दायरा सिमट रहा है कुछ समय पश्चात शायद साहित्य में अर्थपूर्णता पैदा करने का प्रयास करने वाले दीवाने समझे जाएंगे विश्लेषण तो अभी ग़ायब है सोशल मीडिया पर एक ट्रेंड ये चला है कि अगर  आपसे ऐड है और कुछ लिखता है और आपकी पोस्ट पर दो चार बार कुछ लिख चुका है और आप से ऐसा नहीं हो सका तो वो आपको घमंडी समझ कर आपसे नाता तोड़ लेगा ये वो लोग हैं जिनका दर्द कुछ ऐसा जो फेसबुक पर आहों  सूरत में सामने है अक़्लें ज़्यादातर मशीनी हो रही हैं संवेदनशीलता पर जंग लग रहा है लॉक डाउन में इसके लॉक डाउन के आहिस्ता आहिस्ता आगमन मुझे बहोत डराता रहा है मेरी नज़्म आई सी एन ने छापी

जब ईद आयी तो ये तये किया कि  पुराने कपड़ों में ही ईद करेंगे और वैसे ही की भी और इस बार तो ईद बस रोज़ों के मुकम्मल होने का एलान थी कभी का अपना कहा ये शेर याद आया;
यार नहीं तो ख़ाक हैं सारी  मसर्रतें सुहैल
अबकी वो मुझसे दूर है अबकी तो ईद कुछ नहीं
संतोष ने मैसेज में लिखा कि” काश ऐसी ईद अब कभी न आये “उन्होंने अतीत में अपने मुबारकबाद के अमल पर पुर्ण विराम लगा दिया क़ुदरत के समक्ष उन्होंने अपना विनम्र प्रतिवाद प्रेषित किया .

कंप्यूटर पर मैं लेखन का काम करता हूँ और उसी बीच वो खराब  हो गया मायूसी छा गयी सारे बाज़ार बंद कुछ सामान लेने निकला तो एक नौजवान साकिब मिल गया जो कंप्यूटर रिपेयर का माहिर है पड़ोस ही में रहता है जिस्मानी दूरी बनाते हुए कुछ पलों में खराबी दूर कर दी और सलाम करके चला गया उसके लिए ये काम कुछ नहीं था लेकिन मैं इसपर हैरत में था कि वो इसे अपना कारनामा क्यों नहीं समझ रहा था उसने तो मेरी कृतज्ञ नज़रों को भी नहीं देखा वो सन्नाटे में आवाज़ के कोमल सुर बिखेर गया और समस्या को पानी कर गया.

 मेरे साथ अल्लाह की मेहेरबानी इसतरह होती रहती है कुछ नहीं से वो बहोत कुछ निकाल देता है,

 वो तो हर हाल में रहता है निगेहबान मेरा

हर मुसीबत से मुझे साफ़ बचा ले जाए
मजरूह का कहना है के लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया जब अपनी किताब में मशहूर ग़ज़लों पर मैंने ग़ज़लें कहीं तो इस शेर से थोड़ा असहमत हुआ

मैंने कहा है-
जब तलक परखे न जाएँ इस्पे इत्मीनान क्या
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया

किताब के इज्रा के अवसर पर प्रोफेसर शाफ़े क़िदवई ने मेरा समर्थन किया जो समालोचक की हैसियत से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त किये हुए हैं यही न कि साकिब सम्बन्ध के कारवां में है लेकिन उसके काम ने उसे परखे हुओं की श्रेणी में लेकर खड़ा कर दिया

परवेज़ मलिकज़ादा ने फेसबुक पर मेरा एक तफ़रीही नोट पढ़ा फ़ौरन  फ़ोन पर राब्ता किया परवेज़ का फ़ोन आना अच्छा लगा और बहोत अच्छा इसलिए लगा कि  उनदिनों मैं उनके वालिद और अपने उस्ताद प्रोफेसर मालिज़ादा मरहूम की खुदनविश्त “रक्से शरर” नए सिरे से पढ़ रहा था और परवेज़ का ये कहना बहोत सही था कि जब सोशल मीडिया से दिल भरेगा तो किताबें ही साथी होंगी उसी बीच डॉक्टर शाह अयाज़ ने मुझे आई सी एन डिजिटल पोर्टल में  लिटरेरी एडिटर की हैसियत से चयन की सूचना दी इस पोर्टल की पहुंच १६० देशों तक है और हर विषय के माहिर इसमें लिखते है मेरी रचनाएँ विधिवत प्रकाशित हो रही हैं बात कहने का मज़ा यही के वो दूर तक पहुंचे महामारी ने जानें ज़रूर लीं लेकिन प्रत्यक्ष रूप से कोई दवा न होते हुए इस पिशाच को पराजित करने वाले भी बड़ी संख्या में हैं इसलिए अगर उस बीच डर था तो ठीक होने की ख़बरें भी थी जो हज़रत अली के इस क़ौल की तरफ ले जा रही थीं कि “जब तक मौत नहीं आती मौत खुद ज़िन्दगी की हिफाज़त करती है”.

बेरोज़गारी बढ़ेगी आर्थिक तंगी की संभावनाएं थीं और अनलॉक आ गया ,शर्तों के साथ सब कुछ खुलने लगा लेकिन अब अनिश्चिता के नए आयाम सामने आ रहे हैं कारोबार खुले हैं लेकिन धन के आभाव से कारोबारियों के चेहरों पर फ़िक्र के आसार हैं मज़दूर अब अपने स्थान से न हटने का बड़े पैमाने पर फैसला कर  चुके हैँ महंगाई से कमर टूटी है  अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है खौफ ने रूप बदल लिया है कैसे उभरेंगे इस संकट से ये एक विशाल प्रश्न है जिसका उत्तर लॉक डाउन की  उत्तरकथा कथा है. ज़रूरतें भी इस वक़्त ग़ैर ज़रूरी बन गयीं हैं और ये बाज़ार पर उससे सख्त हमला है जो महामारी ने इंसानों पर किया है ये अनलॉक लॉक डाउन की तरह मजबूरी है वरन उससे बड़ी मजबूरी है क्योंकि बीमारी अभी बाक़ी है और ये वायरस जाएगा नहीं ऐसा बहोत से माहरीन की राय है. मैं इसलिए इसपर यकीन कर रहा हूँ कि ये डॉक्टर कौसर उस्मान का बयान है जो हमेशा नपा तुला और ज़्यादातर सही होता है. अब जान है तो जहान है के नए अर्थ  समझ कर सरकार ने ये क़दम उठाया है क्योंकि खाली पेट तो इम्युनिटी को घटा कर बीमारी  का हौसले  बढ़ा देगा. आगे आगे देखिये होगा है क्या… हाँ उम्मीद की रौशनी नज़रों के सामने है और नज़र भविष्य पर है!

दूसरी बात यह पक्की खबरें हैं कि हमारे देश में रिकवरी रेट दूसरे देशों से ज़्यादा है मैं ये समझता हूँ कि ये  इसलिए है कि हम आध्यात्मिक रूप से संपन्न हैं और वही हमारी इम्युनिटी है ये  देवी देवताओं से श्रद्धा की ज़मीन है सूफियों का आवास है दुनिया देखेगी कि दुनिया को यहीं से इसका उपचार मिलेगा नास्तिक न मानें लेकिन अल्लाह सर्वपरि है अध्यात्म मनुष्य से उसका शक्तिशाली संपर्क और वो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला है और वो कहता है अल्लाह की रेहमत से कभी मायूस न होना अनलॉक की इस जारी प्रतिक्रिया में सतर्क रहते हुए सब कुछ सामान्य जाएगा कोरोना भी मामूली बीमारियों की श्रेणीं में समय चक्र के चलते आ जाएगा यक़ीन रखना ही जीने का सहारा है.हाँ अब दायित्व के निर्वाह में बड़ा इम्तेहान है माना कि परिस्थितियां प्रतिकूल हैं लेकिन उससे हिम्मत नहीं टूटना चाहिए ये सोचना चाहिए कि हालात के दबाने से हममें उभरने की शक्ति सृष्टि ने दे रक्खी  है.

सुहैल काकोरवी

Share and Enjoy !

Shares

Related posts